“जी-20 के दौरान हम ग्लोबल साउथ की आवाज एक ‘विश्व मित्र’ बन गए हैं”- पीएम मोदी

प्रधानमंत्री ने विशेष सत्र के दौरान संसद के सेंट्रल हॉल में सांसदों को संबोधित किया

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नई दिल्ली, 20सितंबर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विशेष सत्र के दौरान आज सेंट्रल हॉल में संसद सदस्यों को संबोधित किया।

प्रधानमंत्री ने सदन में अपने संबोधन का शुभांरभ गणेश चतुर्थी के अवसर पर शुभकामनाएं देते हुए किया। उन्होंने आज के उस अवसर का उल्लेख किया जब सदन की कार्यवाही संसद के नये भवन में चल रही होगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि हम भारत को एक विकसित राष्ट्र में बदलने के दृढ़ संकल्प और प्रतिबद्धता के साथ नए संसद भवन में जा रहे हैं।”

संसद भवन और सेंट्रल हॉल के बारे में जानकारी देते हुए प्रधानमंत्री ने इसके प्रेरक इतिहास पर प्रकाश डाला। उन्होंने उल्‍लेख किया कि प्रारंभिक वर्षों में भवन के इस भाग का उपयोग एक तरह से पुस्‍तकालय के रूप में किया जाता था। उन्होंने स्‍मरण किया कि यही वह स्थान है जहां संविधान ने आकार लिया था और स्‍वतंत्रता के समय यहीं सत्ता का हस्तांतरण हुआ था। उन्होंने स्‍मरण किया कि इसी सेंट्रल हॉल में भारत के राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान को अपनाया गया था। प्रधानमंत्री ने बताया कि 1952 के बाद विश्‍व के लगभग 41 राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों ने भारत की संसद के इस सेंट्रल हॉल में संबोधित किया है। उन्होंने बताया कि भारत के विभिन्न राष्ट्रपतियों ने सेंट्रल हॉल में 86 बार संबोधित किया है। उन्होंने कहा कि लोकसभा और राज्यसभा ने पिछले सात दशकों के दौरान लगभग चार हजार अधिनियम पारित किये हैं। प्रधानमंत्री ने संसद के संयुक्त सत्र तंत्र के माध्यम से पारित किए गए कानूनों के बारे में भी बात की और इस दहेज निषेध अधिनियम, बैंकिंग सेवा आयोग विधेयक और आतंकवाद से लड़ने के कानूनों का उल्लेख किया। उन्होंने तीन तलाक पर रोक लगाने वाले कानून का भी उल्‍लेख किया। प्रधानमंत्री ने ट्रांसजेंडरों और दिव्यांगों के लिए बनाए गए कानूनों पर भी प्रकाश डाला।

प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि यह प्रत्येक नागरिक की अपेक्षा और प्रत्येक संसद-सदस्य का विश्वास है कि संसद से पारित सभी कानून, सदन की चर्चा और संदेश को भारतीय आकांक्षाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए। प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा, “संसद में पेश किए जाने वाले प्रत्येक सुधार के लिए भारतीय आकांक्षाओं को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए”।

प्रधानमंत्री ने पूछा कि क्या छोटे कैनवास पर बड़ी पेंटिंग बनाई जा सकती है ? उन्होंने कहा कि अपनी सोच का दायरा बढ़ाए बिना हम अपने सपनों का भव्य भारत नहीं बना सकते। भारत की भव्य विरासत का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यदि हमारी सोच इस भव्य विरासत से जुड़ जाए, तो हम उस भव्य भारत की तस्वीर बना सकते हैं। श्री मोदी ने कहा, “भारत को बड़े कैनवास पर काम करना होगा, छोटी-छोटी बातों में उलझने का समय अब बीत गया है।

उन्होंने आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की प्राथमिकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि शुरुआती आशंकाओं को अस्वीकार करते हुए, दुनिया भारत के आत्मनिर्भर प्रारूप की बात कर रही है। उन्होंने कहा कि रक्षा, विनिर्माण, ऊर्जा और खाद्य तेल के क्षेत्र में कौन आत्मनिर्भर नहीं बनना चाहेगा और इस प्रयास में दलगत राजनीति बाधा नहीं बननी चाहिए।

प्रधानमंत्री ने नई शिक्षा नीति के खुलेपन का जिक्र किया और कहा कि इसे सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया गया है। जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रदर्शन के लिए रखी गई प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की तस्वीर का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने बताया कि विदेशी गणमान्य व्यक्तियों को यह बात अविश्वसनीय लग रही थी कि इस संस्थान का 1500 साल पहले भारत में संचालन होता था। श्री मोदी ने कहा, “हमें इससे प्रेरणा लेनी चाहिए और वर्तमान में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।”

देश के युवाओं की खेल में बढ़ती सफलता का जिक्र करते हुए, प्रधानमंत्री ने टियर 2 और टियर 3 शहरों में खेल संस्कृति के विकास का उल्लेख किया। श्री मोदी ने कहा, “यह राष्ट्र का संकल्प होना चाहिए कि हर खेल पोडियम पर हमारा तिरंगा हो।” उन्होंने आम नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता से जुड़ी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए गुणवत्ता पर अधिक ध्यान देने की बात कही।

मोदी ने कहा कि जी20 शिखर सम्मेलन ग्लोबल साउथ की जरूरतों को पूरा करने का एक माध्यम था और विश्वास व्यक्त किया कि आने वाली पीढ़ियाँ इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर अत्यधिक गर्व महसूस करेंगी। श्री मोदी ने कहा, “जी20 शिखर सम्मेलन द्वारा बोया गया बीज दुनिया के लिए विश्वास का एक विशाल वटवृक्ष बन जाएगा।” प्रधानमंत्री ने जैव ईंधन गठबंधन का उल्लेख किया, जिसे जी20 शिखर सम्मेलन में औपचारिक रूप दिया गया है।

प्रधानमंत्री ने उपराष्ट्रपति और अध्यक्ष से अनुरोध किया कि वर्तमान भवन की महिमा और गरिमा को हर कीमत पर संरक्षित किया जाना चाहिए और इसे पुराने संसद भवन का दर्जा देकर कम नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस भवन को ‘संविधान सदन’ कहा जाएगा। प्रधानमंत्री ने निष्कर्ष के तौर पर कहा, “संविधान सदन के रूप में, पुरानी इमारत हमारा मार्गदर्शन करती रहेगी और हमें उन महान व्यक्तियों के बारे में याद दिलाती रहेगी, जो संविधान सभा का हिस्सा थे।”

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