नई दिल्ली, 6मार्च। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने केंद्र सरकार से उम्मीद जताई कि वह गोवध पर अंकुश लगाने और गाय को संरक्षित राष्ट्रीय पशु घोषित करने के लिए उचित फैसला लेगी। जस्टिस शमीम अहमद की एकल पीठ ने शुक्रवार को कहा कि गोवध करने वाले नर्क में जाते हैं।
बाराबंकी के मोहम्मद अब्दुल खालिक ने याचिका दायर कर गोवध अधिनियम के तहत दर्ज केस को रद करने की मांग की थी। इसे खारिज करते हुए जस्टिस शमीम अहमद ने गाय की महिमा का वर्णन किया और धार्मिक उक्तियों का हवाला देते हुए कहा कि जो लोग गाय का वध करते हैं वे नर्क में जाते हैं और नर्क में उन्हें उतने वर्ष तक रहना पड़ता है जितने उनके शरीर में बाल होते हैं। उन्होंने आदेश में गाय का हिंदुओं में धार्मिक महत्व बताते हुए कहा कि हिंदू धर्म में गाय पशुओं में सबसे पवित्र मानी गई हैं, जो सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली कामधेनु के रूप में भी पूजी जाती है। कोर्ट ने धार्मिक ग्रंथों का हवाला देते हुए कहा कि हमारे देश में गोवंश का वैदिक काल से लेकर मनुस्मृति, महाभारत व रामायण में वर्णित धार्मिक महत्व के साथ आर्थिक महत्व भी है।
न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने कहा कि एक गाय के पैर चार वेदों का प्रतीक हैं और उसका दूध चार “पुरुषार्थ” (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) है। गाय के सींग देवताओं का, प्रतीक हैं, चेहरा सूर्य और चंद्रमा, उसके कंधे अग्नि देव का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि गाय की पूजा की उत्पत्ति वैदिक काल से मानी जा सकती है। ऋग्वेद में दूध देने वाली गाय को “अविनाशी” कहा गया था, अदालत ने कहा, ‘गाय को प्रदान की जाने वा पूजा की डिग्री” पंचगव्य “(गाय- दूध, दही, मक्खन, मूत्र और गोबर) है। इसके बाद, “अहिंसा” के आदर्श के उदय के साथ, गाय अहिंसा का प्रतीक बन गई।
गाय से मिलने वाले कई पदार्थों से पंचगव्य बनता है, इसी कारण पुराणों में गोदान को सर्वोत्तम कहा गया है। भगवान राम के विवाह में भी गायों को उपहार में देने का वर्णन है।