कुछ भारतीय हीन-भावना से कब मुक्त होंगे?

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आस्थावान हिंदू ऋषि सुनक के ब्रितानी प्रधानमंत्री बनने पर भारत में बहुत बड़े वर्ग की खुशी स्वाभाविक है। परंतु इस घटनाक्रम से देश का एक समूह, जिसमें वामपंथी, मुस्लिम जनप्रतिनिधि के साथ कांग्रेस रूपी कई स्वघोषित सेकुलर दल शामिल है— वे सभी एकाएक हीन-भावना से ग्रस्त हो गए और भारत को ब्रिटेन से बहुलतावाद-पंथनिरपेक्षता आदि सीखने का सुझाव देने लगे। क्या वाकई भारत को इसकी जरूरत है? क्या यह सुझाव/आपत्ति भारत की अनंतकालीन बहुलतावादी संस्कृति, पंथनिरपेक्षता और लोकतंत्र को कलंकित करना नहीं?

सुनक द्वारा ब्रिटेन की कमान संभालने पर वरिष्ठ कांग्रेसी सांसद और पूर्व केंद्रीय वित्त-गृह मंत्री पी.चिदंबरम ने ट्वीट करते हुए लिखा, “…अमेरिका और ब्रिटेन के लोगों ने अपने देश के गैर-बहुसंख्यक नागरिकों को गले लगाया और उन्हें सरकार में उच्च पद के लिए चुना। मुझे लगता है कि भारत और बहुसंख्यकवाद को मानने वाली पार्टियों को इससे सीखने की आवश्यकता है।” इसमें पूर्व विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने ट्वीट किया, “…एक अल्पसंख्यक को सबसे शक्तिशाली पद पर आसीन कर ब्रिटेनवासियों ने दुनिया में बहुत दुर्लभ काम किया है। हम भारतीय सुनक की इस उपलब्धि का जश्न मना रहे हैं, तो आइए ईमानदारी से पूछें कि क्या यहां (भारत) ऐसा हो सकता है?” तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भी ऐसे ही विचारों को व्यक्त करते हुए कहा, “एक ब्रिटिश एशियाई को शीर्ष पद पर चुनने के लिए मुझे ब्रिटेन पर गर्व है… भारत अधिक सहिष्णु हो और सभी मजहबों, सभी पृष्ठभूमियों को अधिक स्वीकार करे।”

क्या यह सत्य नहीं कि स्वतंत्र भारत में तीन मुस्लिम, तो एक सिख राष्ट्राध्यक्ष बन चुके है? डॉ. जाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद, डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम और ज्ञानी जैल सिंह— इसके प्रमाण है। यही नहीं, 2004-14 तक देश में सिख समाज, जिनकी आबादी कुल भारतीय जनसंख्या में दो प्रतिशत भी नहीं है— उससे संबंधित डॉ. मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री रहे, तो उसी कालखंड में कैथोलिक ईसाई सोनिया गांधी असंवैधानिक ‘राष्ट्रीय सलाहकार परिषद’ का गठन करके अवैध समानांतर सत्ता का केंद्र बनी रही। देश में कई मुस्लिम-ईसाई, हिंदू बहुल राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ देश में पूर्व-राष्ट्रपति, राज्यपाल और न्यायाधीश (मुख्य न्यायाधीश सहित) तक बन चुके है। क्या इनमें से किसी का उनकी पूजा-पद्धति के कारण विरोध हुआ? यह अलग बात है कि सिख बहुल वर्तमान पंजाब, मुस्लिम बहुल जम्मू-कश्मीर, ईसाई बाहुल्य मिजोरम, मेघालय और नागालैंड में कोई अल्पसंख्यक हिंदू मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है। क्यों?

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