नितिनमोहन शर्मा। खुश तो बहुत होंगे आज आप?
वो जो सबके लिए अश्पृश्य थे। आज वो सर्व स्वीकार्य है। वो जो मुट्ठीभर थे। आज करोड़ो में हैं। वो जो किसी गिनती में नही थे। आज गिनती ही वहां से शुरू होती हैं, जहा से वे खड़े होते है। वो जिन्हें साम्प्रदायिक मुक़र्रर कर दिया गया था। आज सब कुछ उनके इर्द गिर्द घूम रहा हैं। वो जिन्हें जनता का भी साथ नही था। आज जनता उनकी दीवानी है। न वोट मिलते थे। अब झोली भरभर वोट ही वोट है। जीत नसीब नही होती थी। अब जीतने की ग्यारंटी वाले है। न कुर्सी। न पद। न प्रतिष्ठा मिलती थी। अब दर्जनों-सेकड़ो कुर्सियां हैं। राष्ट्रपति, पीएम, सीएम, राज्यपाल जैसे पद है। जिनके पास कोई संसाधन नही था। ढंग का एक दफ्तर भी नही था। आज पांच सितारा दफ्तरों के मालिक है। वो जिनके पास न संगठन। न सत्ता की ताकत थी। आज दुनिया के सबसे बड़े संगठन के मालिक है और चहुओर सत्ता की फसलें लहलहा रही हैं।
खुश तो बहुत होंगे न आज। वो जिनके पास बस था एक विचार। एक स्वप्न। एक जुनून। एक ललक थी। देश के लिए मर मिट जाने की। एक सपना था मातृभूमि को पुनः परम वैभव पर पद प्रतिष्ठित होते हुए देखने का। सता न थी। सरकार नही थी। रसूख नही था। न अकूत संपत्ति। बस थे कुछ जुनूनी लोग। तिल तिलकर अपना सब कुछ स्वाहा करने वाले लोग। नंगे पैर चलने वाले लोग। चने भूंगड़े खाकर गुजारा करने वाले लोग। पानी पीकर भी पेट भरने वाले लोग। फटी धोती और जीर्ण शीर्ण बगल बंडी वाले लोग। पैबंद लगे पजामे कुर्ते वाले लोग। सबको साथ लेकर चलने वाले लोग। पद प्रतिष्ठा के मोह से दूर लोग। ” में नही तू” के भाव वाले लोग जो स्वयम का नही दुसरो का विचार करते थे। समाज के आख़री पंक्ति के व्यक्ति की चिंता करने वाले लोग। आज ऐसे ही सब लोगो के सर्वस्व समर्पण के कारण आपका दल देश की सीमाओं के पार दुनियां में भी अपनी साख, धाख, और सम्मान बना चुका हैं।
खुश तो बहुत होंगे न आज आप। जिस दल की विचारधारा को कोई पसन्द नही करता था। आज उसी विचारधारा के आसपास देश की राजनीति घूम फिर रही है। जिस हिंदुत्व शब्द को लेकर पीछे धकेल दिए गए थे, आज उसी हिंदुत्व के इर्द गिर्द सब दल परिक्रमा कर रहे हैं। जिन्हें चुनाव लड़ाने के लिए लोग नही मिलते थे। आज वहाँ एक एक सीट पर दस दस उम्मीदवार हैं। जो आपकी बाते सुनकर हंसते थे, वे आज उन्ही बातों पर हुंकारे लगा रहे हैं।
है दीनदयाल..! खुश तो बहुत होंगे न आज। सब तरफ सत्ता ही सत्ता हैं। जहां नही है, वहां भी सत्ता का दांवा है। कई राज्यो में सीएम हैं। 10 बरस से देश की सत्ता हाथ मे है। राष्ट्रपति, पंतप्रधान जैसा पद पास हैं। राज्यपालों की लम्बी फेहरिस्त हैं। कद्दावर कद के नेता हैं। मजबूत संगठन हैं। लाखों करोड़ों कार्यकर्ता हैं। हजारों लाखों हितचिंतक है जो मुक्त हस्त से आर्थिक सहयोग को तत्पर हैं। यानी वो सब कुछ है, जिसका सपना आप और आपके साथियों ने देखा था।
है दीनदयाल… अब सब तरफ सत्ता ही सत्ता का शोर है। वो सत्ता जो आप और आपके साथियों के लिए साध्य नही, महज एक साधन थी। उस मंजिल को पाने का महज एक साधन थी जिसका संकल्प भगवा ध्वज के नीचे लिया गया था। लेकिन आज वो विचार कही गुम होता नजर आ रहा हैं जिसमे समाज के अंतिम व्यक्ति के विषय मे चिंतन मन्थन था। अब बाते हैं। इरादे नही। अब दल में ही दलदल की नोबत हैं। सबकी अपनी अपनी भाजपा। अपने अपने नेता। अपने अपने गुट। अपने अपने पट्ठे। जिस विकृति से आप अपने संघ-जनसंघ को बचाये हुए थे, वे सब तेजी से भाजपा में घुस गए है। न केवल घुस गए बल्कि जमते भी जा रहे हैं।
है दीनदयाल। अब आपके ही दल में कोई सत्ता छोड़ने को तैयार नही। एक बार पार्षद बन गए तो बार बार पार्षद बनने के लिए मर रहे है। ये ही हाल विधायको का है। 20-30 साल से एक जेसे सत्ता सुख ले लिए फिर भी कतार में लगे हुए हैं। परिवारवाद भी अब तो चरम पर है। हम नही तो हमारे बेटे-बहुओं, पत्नियों को सत्ता सुख की लालसा सिर चढ़कर बोल रही हैं। सबने अपने अपने गुट बना लिए हैं। सबके अपने अपने नेता हो गए और नेताओं के अपने अपने पट्ठे। पट्ठावाद घर मे घुस गया हैं। पराक्रम की जगह परिक्रमा का चलन में आ गया हैं। दूसरे दल से आये नेताओ के लिए पलक पाँवडे बिछ रहे हैं। दल के लोग हाशिये पर हैं।
संगठन की धाख, साख ओर धमक तेजी से खत्म होती जा रही है। सत्ता, संगठन को जेब मे रखकर घूम रही है। संगठन भी सत्ता सुख में लिप्त होते जा रहा हैं। जो संगठन के नेता थे। वे सत्ता और लाभ के पद पर शान से सुशोभित है। अब संगठन, सत्ता में जाने का ” बेक डोर इंट्री ” बन गया हैं। संगठन और सत्ता के बीच का अंतर लगभग खत्म सा हो चला हैं। अब सत्ता ही तय करती है कि कौन चुनाव का टिकट पायेगा। अब विधायक ही तय करते है कि कौन मंडल अध्यक्ष बनेगा और कौन बूथ अध्यक्ष। अब सत्ता ही तय करती है कि नगर संगठन पर कौन मुफ़ीद रहेगा। संगठन की दाढ़ में सत्ता का सुख लग गया हैं। अब तो संगठन में भी पट्ठावाद घुसपैठ कर गया हैं। उन्हें ही आगे बड़ाया जा रहा है जो “जी हुजरिये” हैं। जो ” किचन केबिनेट ” का हिस्सा है।
है दीनदयाल..! संगठन के तो ये हाल हो चले है कि वो तो अब अफ़सरो के आगे भी हाथ बांधे खड़े हुए है। अब तो अफसर ये भी ये तय करते है कि अगला सांसद, विधायक, महापोर का चुनाव कौन लड़ेगा। सत्ता में अफ़सरो को अघोषित संगठन मंत्री की भूमिका में कर दिया हैं। जिसे आप देव दुर्लभ कार्यकर्ता कहते थे। उसकी कोई सुध नही ले रहा। वो आज भी दरी ही बिछा और उठा रहा है। उम्र के नाम पर उसके सर्वस्व समर्पण को ताक में रखकर घर बैठाया जा रहा हैं। पीढ़ी परिवर्तन का शोर मचाकर नींव के पत्थर हाशिये पर डाले जा रहे हैं। उनकी कोई पूछ परख नही। वे टुकुर टुकुर देख रहे है कि कैसे नेताओ के खास ही पद और मुकाम पा रहे हैं। अब कोई पालक भी नही बचा जो ऐसे कार्यकर्ताओं की सुध ले। उनके आंसू पोछ सके। संगठन अपनी इज़्ज़त खो रहा है और सत्ता अफ़सरो के जरिये उसकी सवारी कर रही हैं। अफ़सरो के जरिये अपने ही दल के नेताओ को परेशान करने और कुर्सी पर स्थाई जमे रहने के खेल चल रहे हैं।
है दीनदयाल..!! आपका दल अब आत्ममुग्ध हैं। सत्ता मदान्ध हो चली है। नेता स्वयम्भू हो चले है। सब तरफ हरा ही हरा नजर आ रहा है, भगवा दल को। फीलगुड है सब तरफ। जड़ो से कटता जा रहा दल, नेता और संगठन का ये फीलगुड स्थाई मान लिया गया है?
है दीनदयाल… अब समाज की अंतिम नही, अग्रिम पँक्ति के व्यक्ति की चिंता का चलन बढ़ चला हैं। आपका एकात्म मानववाद अब कोर्स का हिस्सा हो गया है। समाज जीवन से परे कर दिया गया हैं। अब सब कुछ सत्ता ही है। सत्ता आपके लिए साधन हो सकती है। इनके लिए तो अब सत्ता ही साध्य है।