चन्द्रकला पांडेय
अयोध्या ,4 फ़रवरी । मैंने अपने शहर को इतना विह्वल कभी नहीं देखा! तीन से चार लाख लोग सड़क किनारे हाथ जोड़े खड़े हैं।
अयोध्या में प्रभु की मूर्ति निर्माण के लिए नेपाल से अयोध्या पहुँच चुका हैं कोई प्रचार नहीं, कोई बुलावा नहीं, पर सारे लोग निकल आये हैं सड़क पर… युवक, बूढ़े, बच्चे… बूढ़ी स्त्रियां, घूंघट ओढ़े खड़ी दुल्हनें, बच्चियां…स्त्रियां हाथ में जल अक्षत ले कर सुबह से खड़ी हैं.
अब सड़क किनारे! जब भी शिला वाहन सामने आता है तो सब के सब विह्वल हो कर दौड़ पड़ती हैं उसके आगे… छलछलाई आंखों से निहार रही थी,उस पत्थर को, जिसे श्रीराम होना है।
बूढ़ी महिलाएं, जो शायद शालिग्राम पत्थर के राम-लखन बनने के बाद नहीं देख सकेंगी। वे निहार लेना चाहती हैं अपने राम को… निर्जीव पत्थर में भी अपने आराध्य को देख लेने की शक्ति पाने के लिए किसी सभ्यता को आध्यात्म का उच्चतम स्तर छूना पड़ता है। हमारी इन माताओं, बहनों, भाइयों को यह सहज ही मिल गया है।
जो लड़कियां अपने वस्त्रों के कारण हमें संस्कार हीन लगती हैं, वे हाथ जोड़े खड़ी हैं। उदण्ड कहे जाने वाले लड़के उत्साह में हैं, इधर से उधर दौड़ रहे हैं। मैं भी उन्ही के साथ दौड़ने की कोशिश में हूँ।
इस भीड़ की कोई जाति नहीं है। लोग भूल गए हैं अमीर गरीब का भेद, लोग भूल गए अपनी जाति- गोत्र! उन्हें बस इतना याद है कि उनके गाँव से होकर उनके राम जा रहे हैं।
हमारे यहाँ कहते हैं कि सिया विवाह के बाद श्रीरामजी इसी राह से अयोध्या आए थे.डुमरिया में उन्होंने नदी पार की थी। हम सौभाग्यशाली लोग हैं जो इस यात्रा के साक्षी है .
पाँच सौ वर्ष से ज़्यादा की प्रतीक्षा और असँख्य पीढ़ियों की तपस्या ने हमें यह सौभाग्य दिया है। हम जी लेना चाहते हैं इस पल पल को… हम पा लेना चाहते हैं उस असीम आनन्द को ।क्या समा था , क्या फ़िज़ा थी , क्या माहौल था . नेपाल,माझा से अयोध्या तक ,यात्रियों का हज़ूम. लोग ही लोग . पुरुष , महिलाएँ , नौजवान , बच्चे . बूढ़े भी . सभी उस यात्रा में शामिल . जोश ही जोश . सब राम भक्ति में बेसुध से , बेहोश से . मदमस्त से . भीड़ ही भीड़ . चेहरे ही चेहरे . सब एक भाव में . सम भाव में, राम नाम की जय . सनातन हिंदू धर्म की जय के नारे एक अंतराल के बाद गुंजायमान . अभी भी वो गूंज रहे है , मेरी कानों में .
भारत हो या कोई भी देश का नेता, कोई संत, कोई विचारधारा इतनी भीड़ इकट्ठा नहीं कर सकती, यह उत्साह पैदा नहीं कर सकती। सबको जोड़ देने की यह शक्ति केवल और केवल सनातन हिंदू वैदिक धर्म में है, हमारे श्रीराम जी में है।
साथ चल रहे लोगों के भोजन की व्यवस्था है, रास्ते में वो शिला वाहन स्थान के अनुसार रुक रुक कर चलता है . वे सभी लोग इसी समय आगे बढ़ कर पत्थर को छू लेना चाहते हैं। आशीर्वाद पा लेना चाहते थे,आधे घण्टे की ठेलमठेल के बाद फिर ठाकुरजी को स्पर्श करने का सुख…
अहा!कुछ अनुभव लिखे नहीं जा सकते।
उसी समय ऊपर खड़ा एक स्वयंसेवक शालिग्राम पर चढ़ाई गयी माला प्रसाद स्वरूप फेंकता है। संयोग से माला मेरे हाथ में आ गिरती है। मैं प्रसन्न हो कर अंजुरी में माला लिए भीड़ से बाहर निकल लेती हूँ।
पर यह क्या, किनारे खड़ी स्त्रियां हाथ पसार रही हैं मेरे आगे… दीदी ,एक फूल दे दीजिये, मैडम,एक फूल दे दीजिये। अच्छे अच्छे सम्पन्न घरों की देवियाँ हाथ पसार रही हैं मेरे आगे! यह सब तो श्रीरामजी का ही प्रभाव है।
मैं सबको एक एक फूल देते निकल रही हूँ। फिर भी कुछ बच गए हैं मेरे पास! ये फूल मेरा सौभाग्य हैं…
कुछ लोग समझ रहे हैं कि खरीद कर रामचरितमानस की प्रति जला वे हमारी आस्था को चोटिल कर देंगे। उन मूर्खों को कुछ नहीं मालूम… यह भीड़ गवाही दे रही है कि श्रीराम जी का यह देश अजर अमर है, यह सभ्यता अजर अमर है, राम अजर अमर हैं…जब तक श्री राम है , तब तक आप है , हम हैं, भारत हैं , हिंदुस्तान है . संपूर्ण जगत है ,जय श्रीराम . !