शी जिनपिंग के तीसरी बार राष्ट्रपति बनने से भारत पर क्या असर पड़ेगा, कितनी बढ़ेगी चीन की ताकत

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China: शी जिनपिंग के तीसरी बार राष्ट्रपति बनने से भारत पर क्या असर पड़ेगा, कितनी बढ़ेगी चीन की ताकत
सवाल उठता है कि जिनपिंग की बढ़ती ताकत का भारत पर क्या असर पड़ेगा? चीन की कितनी ताकत बढ़ेगी और जिनपिंग ने इसके लिए क्या-क्या तैयारियां कर रखी हैं? आइए जानते हैं…

शी जिनपिंग एक बार फिर से चीन के राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस के 20वें अधिवेशन के समापन के ठीक बाद इसका एलान हुआ। जिनपिंग को पार्टी का महासचिव भी चुना गया है। चीन में इस पद के लिए चुने जाने वाला नेता ही पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का कमांडर भी रहता है।

कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक माओत्से तुंग के बाद शी जिनपिंग पहले राष्ट्रपति हैं जिन्हें लगातार तीसरी बार कार्यकाल मिला है। इसके पहले माओत्से तुंग ने करीब तीन दशक तक चीन पर शासन किया था। अब तो कहा जा रहा है कि जिनपिंग भी माओ की तरह जीवनभर सत्ता में बने रहना चाहते हैं।

खैर, तीसरा कार्यकाल मिलने से ये तो साफ हो गया है कि जिनपिंग की ताकत पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ गई है। पार्टी के अंदर और सरकार में अब उनका कोई विरोध करने वाला भी नहीं बचा है। इस बार बैठक के दौरान उन्होंने अपने सभी विरोधियों को पार्टी से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया। यहां तक कि चीन के प्रधानमंत्री, पूर्व राष्ट्रपति तक को बाहर कर दिया।
पहले जानिए कम्युनिस्ट पार्टी के अधिवेशन में क्या-क्या हुआ?
चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का अधिवेशन 16 अक्तूबर से शुरू हुआ था। इस दौरान बैठक में हर रोज चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बढ़ती ताकत का एहसास दिलाया गया। बैठक के आखिरी दिन यानी 22 अक्तूबर को देश के पूर्व राष्ट्रपति हू जिंताओ को मीटिंग हॉल से जबरन बाहर निकाल दिया गया। इसका एक वीडियो भी सामने आया, जिसमें शी जिनपिंग के ठीक बगल में बैठे हू जिंताओ को दो सुरक्षाकर्मियों ने कुर्सी से उठाया और एस्कॉर्ट कर मीटिंग हॉल से बाहर ले गए। इस दौरान शी जिनपिंग सबकुछ देखते रहे। जिनपिंग ने बैठक के आखिरी दिन प्रधानमंत्री ली केकियांग और तीन अन्य उच्च नेताओं को भी हटा दिया।

23 अक्तूबर को शी जिनपिंग के तीसरी बार राष्ट्रपति बनने का आधिकारिक एलान हो गया। इसी के साथ जिनपिंग ने अपनी नई टीम की भी घोषणा की। ली कियान्ग को नया प्रधानमंत्री बनाया गया है। शी जिनपिंग ने पोलित ब्यूरो की स्टैंडिंग कमेटी के सात सदस्यों के नामों का भी एलान कर दिया। इसमें शी जिनपिंग के साथ ली कियान्ग, झाओ लेजी, वांग हुनिंग, काई की, ली शी और डिंग शुशियांग शामिल हैं। डिंग कम्युनिस्ट पार्टी के जनरल ऑफिस के डायरेक्टर रहे हैं। ये शी के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक हैं। डिंग, जिनपिंग के साथ विदेश में होने वाली कई बैठकों में भाग ले चुके हैं।

अब जानिए जिनपिंग के फिर राष्ट्रपति बनने से भारत पर क्या असर पड़ेगा?
इसे समझने के लिए हमने विदेश मामलों के जानकार डॉ. आदित्य पटेल से बात की। उन्होंने कहा, ‘चीन शुरू से ही भारत का विरोधी रहा है। हालांकि, जिनपिंग के आने के बाद से दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति कुछ ज्यादा ही बढ़ गई। 2020 में जिस तरह से गलवान घाटी में घटना हुई, उसके बाद से अब तक तनाव की स्थिति कायम है। अब तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद जिनपिंग अपनी कोशिशों को और मजबूती दे सकते हैं।’

आदित्य आगे कहते हैं, ‘चीन भारत के खिलाफ पाकिस्तान का भी इस्तेमाल करता है। अब जिनपिंग के फिर से राष्ट्रपति बनने के बाद पाकिस्तान को भी बढ़ावा मिलेगा। हाल ही में चीन ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तानी आतंकवादी का बचाव करके ये साबित भी कर दिया है। इसके अलावा पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय संगठन फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की ग्रे लिस्ट से बाहर आने में चीन ने भी खूब मदद की है। पाकिस्तान चीन के कर्ज तले दबा हुआ है। ऐसे में आने वाले समय में भारत को अस्थिर करने के लिए पाकिस्तान चीन के इशारे पर अपनी अवैध गतिविधियों को भी बढ़ा सकता है।’

दूसरे देशों के खिलाफ भी बढ़ेगी आक्रामकता
ऐसा नहीं है कि शी जिनपिंग केवल भारत के लिए खतरा हैं। डॉ. आदित्य कहते हैं, ‘शी जिनपिंग पहले से ज्यादा मुखर होकर अपने फैसले लेंगे। अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान उनका पूरा फोकस अर्थव्यवस्था को और अधिक शक्तिशाली बनाना होगा। इसके अलावा मजबूत सेना का निर्माण, आक्रामक कूटनीतिक चाल भी देखने को मिलेगी।’

आदित्य के अनुसार, आने वाले समय में ताइवान पर कब्जे को लेकर भी जिनपिंग बड़ा कदम उठा सकते हैं। जिनपिंग कब्जे की नीति अपनाकर अपनी सीमाओं को बढ़ाना चाहते हैं। वह ये दिखाना चाहते हैं कि दुनिया में उनसे मजबूत नेता कोई दूसरा नहीं है। यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन भी नहीं।

शी जिनपिंग की कब्जे वाली नीति का असर है कि सारे पड़ोसी देशों ने अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाना शुरू कर दिया है। चीन ने पिछले एक दशक में दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना का निर्माण किया। दुनिया की सबसे बड़ी स्थायी सेना को नया और आधुनिक बनाया। परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइलों में भी इजाफा किया। इससे भारत ही नहीं, बल्कि चीन के अन्य पड़ोसी देश भी परेशान हैं।

ऑस्ट्रेलिया, जापान, ताइवान, वियतनाम, फिलीपींस जैसे देशों ने भी अपनी सैन्य ताकत में इजाफा करना शुरू कर दिया है। आने वाले कुछ वर्षों में इसमें और तेजी देखने को मिल सकती है। अभी दक्षिण कोरिया ब्लू-वाटर नेवी विकसित कर रहा है, ऑस्ट्रेलिया परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियां खरीद रहा है। भारत नई-नई मिसाइलें, एयर डिफेंस, पनडुब्बियां, लाइट टैंक जैसे हथियार खरीद रहा है।

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन का सैन्य बजट लगातार 27 साल से बढ़ रहा है। आज, चीन के पास दो सक्रिय विमानवाहक पोत, सैकड़ों लंबी और मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें, हजारों युद्धक विमान हैं। चीन की नौसेना भी अब अमेरिका से आगे है।

यही नहीं, चीन का परमाणु भंडार भी तेजी से बढ़ रहा है। पेंटागन की रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने परमाणु मिसाइलों को जमीन, समुद्र और हवा से लॉन्च करने की क्षमता हासिल कर ली है। चीन के पास लगभग 350 परमाणु हथियार हैं, जो शीत युद्ध के दौरान बनाए गए चीनी हथियारों से दो गुना है।

अमेरिकी खुफिया विभाग का अनुमान है कि 2027 तक चीन के परमाणु हथियारों का भंडार फिर से दो गुना होकर 700 हो सकता है। चीन देश के उत्तर-पश्चिम में नए परमाणु मिसाइल साइलो बना रहा है। पिछले साल पेंटागन की एक रिपोर्ट में कहा गया था, चीन ही एकमात्र ऐसा देश है जो अपनी आर्थिक, राजनयिक, सैन्य और तकनीकी शक्ति को एक स्थिर और खुली अंतरराष्ट्रीय प्रणाली के लिए निरंतर चुनौती देने में सक्षम है। बीजिंग अपनी सत्तावादी व्यवस्था और राष्ट्रीय हितों के साथ बेहतर तालमेल बिठाने के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को नया रूप देना चाहता है।

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