भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार ने स्वर्गीय रफी अहमद किदवई के निजी दस्‍तावेज संग्रह का किया अधिग्रहण

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नई दिल्ली,09मई। भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार (एनएआई) ने स्वर्गीय रफी अहमद किदवई के निजी दस्‍तावेज संग्रह का अधिग्रहण कर लिया है। इनमें पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पीडी टंडन जैसे अन्य प्रतिष्ठित नेताओं के साथ किदवई के मूल पत्राचार शामिल हैं। ये कागजात ताज़ीन किदवई, स्वर्गीय हुसैन कामिल किदवई की बेटी, सबसे छोटे भाई रफ़ी अहमद किदवई और सारा मनाल किदवई की उपस्थिति में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अपर सचिव फैज़ अहमद किदवई (आईएएस) ने भारतीय राष्‍ट्रीय अभिलेखागार (एनएआई) के महानिदेशक को सौंपे गए।

भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार भारत सरकार के गैर-मौजूदा अभिलेखों का संरक्षक है और सार्वजनिक रिकॉर्ड अधिनियम 1993 के प्रावधान के अनुसार प्रशासकों और शोधकर्ताओं के उपयोग के लिए उन्हें ट्रस्ट में रखता है। एक प्रमुख अभिलेखीय संस्थान के रूप में, भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार अभिलेखीय चेतना को निर्देशित करने और आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सार्वजनिक अभिलेखों के विशाल संग्रह के अतिरिक्‍त भारतीय राष्‍ट्रीय अभिलेखागार के पास देश हित में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करने वाले सभी क्षेत्रों के प्रतिष्ठित भारतीयों के निजी पत्रों का एक समृद्ध संग्रह है।

रफी अहमद किदवई जीवंतता, प्रतिभा और आकर्षक व्यक्तित्‍व के धनी थे। उन्‍होंने हमारे देश की स्‍वतंत्रता के लिए अपने निरंतर प्रयासों और हर प्रकार की सांप्रदायिकता और अंधविश्वासों का खंडन किया। उनका जन्‍म 18 फरवरी, 1894 को मसौली, उत्तर प्रदेश के एक मध्यम वर्गीय जमींदार परिवार में हुआ। उनकी राजनीतिक यात्रा 1920 में खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन में शामिल होने के साथ शुरू हुई, जिसके बाद उन्हें जेल जाना पड़ा। किदवई ने मोतीलाल नेहरू के निजी सचिव के रूप में कार्य किया और बाद में कांग्रेस विधान सभा और संयुक्त प्रांत कांग्रेस समिति में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। उनके राजनीतिक कौशल ने उन्हें पंडित गोविंद बल्लभ पंत के मंत्रिमंडल में मंत्री बनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने राजस्व और जेल विभागों का प्रबंधन किया। स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में भारत के पहले संचार मंत्री के रूप में कार्य किया और “अपना टेलीफोन अपनाएं” सेवा और रात्रि हवाई मेल जैसी पहल शुरू की। 1952 में, उन्होंने अपने प्रशासनिक कौशल से खाद्य राशनिंग चुनौतियों से सफलतापूर्वक निपटते हुए, खाद्य और कृषि विभाग का कार्यभार संभाला।

भारत की स्‍वाधीनता और देश को सुदृढ़ करने के लिए किदवई का समर्पण उनके पूरे राजनीतिक जीवन में अटूट रूप से विद्यमान रहा। उनके योगदान को 1956 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा रफी अहमद किदवई पुरस्कार के निर्माण के साथ मान्यता दी गई। संचार मंत्री के रूप में किदवई के कार्यकाल ने उन्हें नवाचार और प्रभावशीलता के लिए प्रतिष्ठा दिलाई, जबकि खाद्य मंत्रालय में उनके नेतृत्व को सराहा गया। विपरीत परिस्थितियों ने उसे एक विलक्षण और एक चमत्कारी व्यक्तित्‍व का उपनाम दिलाया। रफ़ी अहमद किदवई ने वास्तव में देश की स्‍वाधीनता के संघर्ष और बाद में अपनी प्रशासनिक भूमिकाओं में कार्रवाई और समर्पण को मूर्त रूप दिया। संकटों का तेजी से समाधान करने और नवीन समाधानों को लागू करने की उनकी क्षमता उनके उल्लेखनीय नेतृत्व गुणों को उजागर करती है। संचार से लेकर कृषि तक विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान ने देश के विकास पर स्थायी प्रभाव छोड़ा। एक प्रतिबद्ध स्वतंत्रता सेनानी और एक कुशल प्रशासक के रूप में उनकी विरासत पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।

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