सब- इंस्पेक्टर मनोज तोमर ने नमाजियों को ठोकर मार कर पुलिस की साख पर बट्टा लगाया, आईपीएस अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान ?

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आपके लिए आपके साथ सदैव, सिटीजन फर्स्ट और शांति सेवा न्याय जैसे पुलिस के‌ ये ध्येय वाक्य सिर्फ नारे बन कर रह गए हैं। दिल्ली पुलिस द्वारा दिल की पुलिस होने का भी दावा किया जाता है। लेकिन पुलिस का आचरण /व्यवहार इन सब के बिल्कुल विपरीत/ उलट ही है।

पुलिस की छवि सुधारने के लिए पुलिस को जनता का मित्र बनाने की कवायद भी की जाती है। लेकिन लोगों के प्रति पुलिस के व्यवहार और नजरिये में रत्ती भर भी सुधार नज़र नहीं आ रहा है। पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार के मामले तो लगातार सामने आते ही रहते हैं।

सड़क पर नमाज क्यों –
निरंकुश पुलिसकर्मी कानून को भी अपने हाथ में ले रहे हैं। ताजा उदाहरण 8 मार्च को इंद्र लोक पुलिस चौकी के इंचार्ज सब-इंस्पेक्टर मनोज तोमर द्वारा मस्जिद के बाहर सड़क पर जबरन नमाज़ पढ़ने वाले नमाजियों को लात/ ठोकर मारने का है।
किसी भी धर्म के लोगों द्वारा सड़क पर रास्ता रोक कर पूजा/इबादत करना गलत और गैर कानूनी है।
पुलिस को बिना किसी भेदभाव के कानून का उल्लंघन करने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए।
नमाजियों ने भी कानून का उल्लंघन तो किया ही है। उनको भी कानून और पुलिस के आदेश का सम्मान और पालन करना चाहिए था।

मनोज तोमर का अपराध अक्षम्य-
सड़क पर नमाज पढ़़ने वालों के ख़िलाफ़ भी पुलिस को कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए थी। लेकिन कानूनी कार्रवाई करने की बजाए पुलिस खुद ही कानून अपने हाथ में ले ले, तो यह अपराध और निरंकुशता है। पुलिस का निरंकुश होना सभ्य समाज के लिए खतरनाक और गंभीर मामला है।
हालांकि कानून का उल्लघंन करने वाले नमाजियों से भी कोई सहानुभूति नहीं होनी चाहिए।
लेकिन नमाजियों को लात मारी गई, इसको सिर्फ इस दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए। नमाजी/ मुसलमान भी सबसे पहले एक इंसान और नागरिक हैं।
लोकतंत्र और सभ्य समाज में रहने वाले नागरिकों को वर्दी के नशे में चूर निरंकुश सब-इंस्पेक्टर मनोज तोमर ने लात मारकर अपराध किया है। कानून तो पुलिस को किसी अपराधी तक को भी मारने- पीटने की इजाज़त नहीं देता है।

दंगे के मुहाने पर-
कानून के अनुसार सब- इंस्पेक्टर मनोज तोमर के ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। सब- इंस्पेक्टर मनोज तोमर ने तो ऐसा अपराध किया है कि अगर इलाके के लोग समझदारी न दिखाते, तो दंगा हो सकता था। सब- इंस्पेक्टर मनोज तोमर ने तो संवेदनशील इलाके में इबादत के समय नमाजियों को लात मारकर एक तरह से लोगों को दंगा करने के लिए उकसाने का ही काम कर दिया था। अगर लोग भी पलट वार करके सब- इंस्पेक्टर मनोज तोमर की पिटाई कर देते तो हालात बेकाबू हो सकते थे।
कानून के रक्षक मनोज तोमर ने तो कानून हाथ में लेकर खाकी को खाक में मिला दिया। लेकिन लात/ ठोकर खाने के बावजूद लोगों ने, खासकर युवाओं ने कानून अपने हाथ में न लेकर बहुत अच्छा उदाहरण पेश किया।
अगर ये लोग भी कानून अपने हाथ में ले लेते, तो उन्हें ही अपराधी मान लिया जाता और सब- इंस्पेक्टर मनोज तोमर का अपराध छिप/दब जाता।

कानून को ठोकर मारी-
दरअसल सब- इंस्पेक्टर मनोज तोमर ने यह लात नमाजियों/ नागरिकों को नहीं मारी, उसने भारत के कानून, संविधान, अपने प्रशिक्षण, शपथ, संस्कार, अपनी वर्दी, और उन आईपीएस अधिकारियों को लात/ठोकर मारी है जिन्होंने उसे पुलिस चौकी के इंचार्ज जैसे संवेदनशील और महत्वपूर्ण पद पर तैनात किया।

आईपीएस की भूमिका-
इस मामले ने पुलिस मुख्यालय और जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की भूमिका पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। क्या आईपीएस अधिकारियों को सब- इंस्पेक्टर मनोज तोमर को चौकी इंचार्ज के पद पर तैनात करने से पहले उसकी मानसिकता, स्वभाव/आचरण के बारे में नहीं जानना चाहिए था। जिससे यह पता चल सकता था कि मनोज तोमर इस पद पर तैनात किए जाने के योग्य है या नहीं।
आईपीएस अधिकारियों ने कानून हाथ में लेने वाले एक ऐसी मानसिकता वाले सब- इंस्पेक्टर को चौकी इंचार्ज बना दिया, जिसकी हरकत ने लोगों को दंगे के मुहाने पर ला कर खड़ा दिया था।
सब- इंस्पेक्टर मनोज तोमर ने देश में ही नहीं पूरी दुनिया में दिल्ली पुलिस की छवि को खराब करने का अपराध किया है।

सबक सिखाएं –
उत्तरी जिला पुलिस के डीसीपी मनोज कुमार मीना ने तुरंत सब इंस्पेक्टर मनोज तोमर को निलंबित तो कर दिया। लेकिन निलंबन कोई सज़ा नहीं होती। सब- इंस्पेक्टर मनोज तोमर को ऐसी सज़ा दी जानी चाहिए ताकि भविष्य में कोई अन्य पुलिसकर्मी कानून अपने हाथ में न ले। इस मामले ने तो पुलिस की बची खुची साख भी खत्म करने का काम किया है।
दूसरी ओर पुलिस अफसरों तक का मानना है कि सब- इंस्पेक्टर मनोज तोमर ने यह बहुत ही गलत काम किया है।
वैसे सब- इंस्पेक्टर मनोज तोमर के इस अपराध का सिर्फ वह व्यक्ति ही समर्थन करेगा जिसकी संविधान, कानून, लोकतंत्र और सभ्य समाज में आस्था नहीं है।

अत्याचार –
तीस हजारी कोर्ट परिसर में कुछ साल पहले वकीलों से पिटने वाली पुलिस आम आदमी को पीट कर या उसके साथ दुर्व्यवहार कर बहादुरी दिखाती हैं।

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