प्रधानमंत्री मोदी ने संवैधानिक चेतना की अलख जगाई: पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द

प्रधानमंत्री मोदी संविधान को लोगों तक ले गए और व्यक्तिगत संप्रभुता पर जोर दिया: मीनाक्षी लेखी

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नई दिल्ली, 8दिसंबर। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने ‘नए भारत का सामवेद’ के विमोचन की शोभा बढ़ाई, जो प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के प्रभावशाली भाषणों पर प्रकाश डालने वाला एक मौलिक संग्रह है, जो हमारे देश के संविधान में निहित मूल सार और मूल्यों की गहन खोज करता है। कार्यक्रम का आयोजन संस्कृति और विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी की गरिमामयी उपस्थिति में हुआ जिसकी अध्यक्षता आईजीएनसीए के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने की। कार्यक्रम में उपस्थित विशिष्ट व्‍यक्तियों में आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी शामिल थे। पुस्तक विमोचन के दौरान प्रभात प्रकाशन से प्रभात कुमार भी मौजूद थे। यह प्रतिष्ठित कार्यक्रम इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्‍द्र के भीतर स्थित ‘समवेत’ सभागार में हुआ। इस महत्वपूर्ण विमोचन ने देश के लोकाचार के सार को समाहित करते हुए भारत की संवैधानिक विरासत और समकालीन प्रतिध्वनि के मेल का जश्न मनाया।

एक सम्मानित संबोधन के दौरान, पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने आत्मनिर्भरता की भावना को प्रतिध्वनित करते हुए ‘स्वायत पोषित पद्धति’ (स्‍वतंत्र प्रयास प्रक्रिया) की अवधारणा की बात की। इस अवसर से प्रसन्न होकर उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस अवसर पर उपस्थित होना उनके लिए सौभाग्य की बात है। उन्होंने ‘नए भारत का सामवेद’ पुस्तक के विमोचन के लिए आभार व्यक्त किया और इसे हमारे संविधान के सार की निर्बाध निरंतरता के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने इसकी परिवर्तनकारी क्षमता, आम नागरिक और हमारे मूलभूत दस्तावेज़ के बीच एक सेतु की कल्पना, सभी के लिए इसकी समझ को सरल बनाने पर प्रकाश डाला। श्री कोविंद ने आधुनिक भारत के लिए ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ (एक भारत शानदार भारत) के संदर्भ में इसकी बढ़ती प्रासंगिकता पर जोर देते हुए संविधान के साथ लोगों के जुड़ाव में समसामयिक तेजी देखी।

अपने संबोधन के दौरान मीनाक्षी लेखी ने ‘नए भारत का सामवेद’ शीर्षक में ‘सामवेद’ के प्रतीकात्मक महत्व पर प्रकाश डाला और नए भारत को आकार देने में प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के मार्गदर्शन और नेतृत्व को चित्रित किया। हमारे राष्ट्रीय लोकाचार के भंडार के रूप में संविधान पर जोर देते हुए, उन्होंने बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर को इसकी आत्मा और भावना के रूप में श्रद्धापूर्वक नमन किया। मर्माहत होते हुए, उन्होंने विशेषकर महिलाओं को वश में करने में, संविधान के सार के ऐतिहासिक दमन पर अफसोस जताया, जबकि अंबेडकर के समानता और गैर-भेदभाव के अभूतपूर्व सिद्धांतों की सराहना की।पुस्तक को संविधान के समकालीन आलोचकों को मुंहतोड़ जवाब देने वाला बताते हुए उन्होंने बाबासाहब भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि के रूप में प्रधानमंत्री श्री मोदी की ‘पंचतीरथ’ की रचना की सराहना की। श्रीमती लेखी ने संविधान के भीतर प्रत्येक व्यक्ति की संप्रभुता को स्वीकार करने पर जोर देते हुए भारत के लोकाचार और सिद्धांतों को उजागर करने का श्रेय प्रधानमंत्री को दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री श्री मोदी द्वारा ‘अमृत महोत्सव’ की शुरुआत की सराहना की, जो पहली बार इस सिद्धांत के उत्सव का प्रतीक है, उन्होंने प्रधानमंत्री को संविधान के सार का प्रेरणा स्रोत बताया। ‘अमृत काल’ के दौरान पैदा हुई कर्तव्य की भावना पर जोर देते हुए, उन्होंने राष्ट्र के पंथ की आधारशिला के रूप में संविधान की पवित्रता पर जोर दिया और इसके मूल्यों का समर्थन करने के लिए प्रधानमंत्री श्री मोदी की सराहना की।

रामबहादुर राय ने अपने सम्बोधन में कहा कि यह पुस्तक जनचेतना का परिणाम है। उन्होंने श्री नरेन्‍द्र मोदी के नए विचारों से ऊर्जावान होकर सार्वजनिक चेतना में इसकी उत्पत्ति पर प्रकाश डाला। उन्होंने संविधान दिवस मनाने की प्रधानमंत्री की अनूठी पहल की सराहना की और इस बात पर जोर दिया कि ऐसा विचार उनसे पहले कभी किसी के मन में नहीं आया था, जो प्रधानमंत्री के कार्यों में निहित विचारशीलता को दर्शाता है। श्री राय ने इस स्मरणोत्सव के माध्यम से जनता और संविधान के बीच बने सहजीवी संबंध की सराहना की। फली एस. नरीमन के ‘यू मस्ट नो योर कॉन्स्टिट्यूशन’ का जिक्र करते हुए उन्होंने संविधान की कथित अपूर्णता को पूरा करने में प्रधानमंत्री की भूमिका का उल्लेख किया। यह उल्लेखनीय होगा कि श्री रामबहादुर राय ने इस असाधारण प्रकाशन की प्रस्तावना में स्‍पष्‍ट और गहरा अनुभव प्रदान किया है।

डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने अपने स्वागत भाषण में गणमान्य व्यक्तियों का अभिवादन किया और आज के युवाओं को संविधान को समझने की दिशा में मार्गदर्शन करने में पुस्तक के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने संविधान दिवस मनाने के लिए प्रधानमंत्री की प्रेरणादायक प्रतिबद्धता की प्रशंसा की, और इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे यह पुस्तक प्रधानमंत्री के भाषणों में स्पष्ट भारत की सांस्कृतिक और जन-केंद्रित ताकत को प्रतिबिंबित करती है। डिजिटल और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर संविधान के बारे में गलत सूचना के प्रचलित प्रसार को नकारते हुए, डॉ. जोशी ने ऐसी नकारात्मकता का मुकाबला करने में पुस्तक की प्रासंगिकता पर जोर दिया। उन्होंने संविधान दिवस मनाने में प्रधानमंत्री की राष्ट्रीय चेतना की जागृति पर जोर दिया, जो भारत के संवैधानिक ढांचे के भीतर प्रतिध्वनित होता है। पुस्तक के अंश उद्धृत करते हुए, डॉ. जोशी ने दोहराया कि संविधान में गरीबों को न्याय, सभी वर्गों के लिए समान अवसर और सामाजिक या सरकारी बाध्‍यताओं में रुकावट डाले बिना प्रत्येक व्यक्ति के विकास और सपनों के लिए एक सक्षम वातावरण की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

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