प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना वर्तमान समय की आवश्यकता- नरेंद्र सिंह तोमर

0 29

नई दिल्ली, 28अप्रैल। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि आज हमारा देश बहुत बड़े बदलाव से गुजर रहा है। हम 21वीं सदी का भारत देख रहे हैं, जिस पर पूरी दुनिया की नजरें और हमसे अपेक्षाएं हैं। दुनिया का बड़ा तबका भारत से सहारे की अपेक्षा करता है, फिर वह तकनीक हो, मैनपॉवर या खान-पीने की वस्तुएं। हम पर अपनी जरूरतें पूरी करने के साथ-साथ दुनिया के प्रति भी जिम्मेदारी है। यही कारण है कि कृषि क्षेत्र हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है और समय के हिसाब से इसमें जरूरी परिवर्तन करना भी आवश्यक है। केंद्रीय मंत्री तोमर ने यह बात एग्रीकल्चर टुडे ग्रुप द्वारा आयोजित बायोएग- 2023 कांफ्रेंस व अवार्ड्स समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में कही।

केंद्रीय मंत्री तोमर ने कहा कि हर देश की कुछ न कुछ प्रधानता होती है, उसकी अनदेखी की जाती है तो असंतुलन की स्थिति बनती है। हमारी प्रधानता कृषि है, आज इस दिशा में तेजी से विचार की जरूरत है कि अपनी प्रधानता को और मजबूत कैसे बनाएं। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आत्मनिर्भर भारत की बात कहते हैं, लोकल फॉर वोकल पर जोर देते हैं, एक जिला-एक उत्पाद को समर्थन देते हैं तो इनमें ये प्रधानता ही समाहित है। यह भी समझना होगा कि कृषि क्षेत्र देश के लिए प्रमुख है, क्योंकि प्रतिकूल परिस्थिति में भी यह देश के साथ खड़ा रहकर आगे बढ़ाने में योगदान देता रहेगा। कोविड कालखंड में हमने इसे महसूस किया है, जब बड़ी-बड़ी फैक्टरियों के पहिए थम गए, तब भी कृषि-किसान ने देश की जीडीपी का साथ दिया व करोड़ों लोगों को भोजन कराने में मदद की। कई मित्र देशों तक भी भारत से खाद्यान्न पहुंचा। वर्तमान परिस्थिति में सबको लगता है खेती की लागत कम करने, पर्यावरण संरक्षित करने, मृदा शक्ति बढ़ाने व रासायनिक उर्वरकों से शरीर को भी दुष्प्रभाव से बचाने के लिए प्राकृतिक खेती के बारे में विचार करना चाहिए। सरकार इस दिशा में प्रयास कर रही है, प्राकृतिक खेती के लिए 1500 करोड़ रु. का बजट रखा है एवं एक करोड़ किसानों को तीन साल में जोड़ने का लक्ष्य है।

केंद्रीय मंत्री तोमर ने कहा कि आज हम महसूस करने लगे हैं कि केमिकल फॉर्मिंग से जमीन की उर्वरा शक्ति कम होती है, जैविक तत्व नष्ट हो जाते हैं। जीव-जंतु व मनुष्य शरीर और पर्यावरण की दृष्टि से भी यह नुकसानदायक है। इससे खेती की लागत भी बढ़ रही हैं, जरूरी है कि हम समय रहते इस परिस्थितियों पर विमर्श कर अपने रास्ते सीमित करें और बदल सकते हैं तो बदलना भी चाहिए। विचार-विमर्श से ही जैविक व प्राकृतिक खेती की बात सामने आई है। सरकार ने भी जैविक खेती को प्रमोट किया और आज सिक्किम व मध्य प्रदेश जैसे राज्य इसमें अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। कृषि लागत कम करने, किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी जैविक खेती कारगर है, वहीं प्राकृतिक खेती में तो लागत बहुत ही कम है। प्राकृतिक खेती में जो कुछ भी लगता है वह किसान के घर में ही मौजूद है। गाय, गोबर, गौमूत्र, पेड़, की मिट्टी, नीम की पत्तियां, गुड़ व बेसन ये सब किसान के घर में ही रहता है। इन्हीं से जीवामृत व बीजामृत तैयार होगा व प्राकृतिक खेती को बढ़ाया जा सकता है। आईसीएआर भी इसमें सहभागी बना है।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि आज हमारी अपनी जरूरत के साथ-साथ दुनिया के प्रति भी हमारी जिम्मेदारी है, लेकिन किसी भी विधा को एक साथ पलटने की समय इजाजत नहीं देता है। अति किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती है। रासायनिक उर्वरकों का उपयोग मृदा परीक्षण के बाद जरूरत के मुताबिक ही किया जाएं तो कम नुकसान होगा। केंद्रीय मंत्री तोमर ने कहा कि हमारे वैज्ञानिकों ने देश में नैनो यूरिया, नैनो डीएपी भी बना दिया है, उनका ज्यादा उपयोग करें। कोशिश होना चाहिए कि रकबा व फसल इतनी हो जाएं कि हम संतुलन बनाए रख सकें, देश की आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ दुनिया की अपेक्षाओं को भी पूरा कर सकें। साथ ही आने वाली पीढ़ी कृषि की ओर आकर्षित हो, कृषि क्षेत्र रोजगार के अवसर पैदा करने वाला हो, इस पर भी विचार करने की जरूरत है।

भारतीय खाद्य एवं कृषि परिषद् के चेयरमैन डॉ. एम.जे. खान, एनआरएए के सीईओ डॉ. अशोक दलवई, रबर बोर्ड के अध्यक्ष डा. सावर धनानिया, अगम खरे, रिक रिग्नर ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री तोमर ने विभिन्न श्रेणियों में कृषि उद्योग की संस्थाओं को अवार्ड्स दिए।

Leave A Reply

Your email address will not be published.