‘भाषा’ निःसंदेह कला एवं संस्कृति से अटूट रूप से जुड़ी हुई है। विभिन्न भाषाएं, दुनिया को भिन्न तरीके से देखती हैं। इसलिए मूल रूप से किसी भाषा को बोलने वाला व्यक्ति अपने अनुभवों को कैसे समझता है या उसे किस प्रकार ग्रहण करता है यह उस भाषा की संरचना से तय होता है।
संस्कृति हमारी भाषाओं में समाहित है। साहित्य, नाटक, संगीत, फिल्म आदि के रूप में कला का पूरी तरह वर्णन करना, बिना भाषा के संभव नहीं है। संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और प्रसार के लिए हमें उस संस्कृति की भाषाओं का संरक्षण और संवर्धन करना होगा। भाषाओं को अधिक व्यापक रूप में बातचीत और शिक्षण अधिगम के लिये प्रयोग में लिया जाना चाहिए।
भारतीय भाषाओं, तुलनात्मक साहित्य, सृजनात्मक लेखन, कला, संगीत, दर्शनशास्त्र आदि के सशक्त विभागों एवं कार्यक्रमों को देश भर में प्रारंभ किया जाएगा और उन्हें विकसित किया जाएगा। साथ ही इन विषयों में दोहरी डिग्री चार वर्षीय बी.एड. (4Years Dual Degree B.Ed Courses) सहित डिग्री कोर्स विकसित किए जाएंगे।
ये विभाग एवं कार्यक्रम, विशेष रूप से उच्चतर योग्यता के भाषा शिक्षकों के एक बडे़ कैडर को विकसित करने में सहयोग करेगा। साथ ही साथ कला, संगीत, दर्शनशास्त्र एवं लेखन के शिक्षकों को भी तैयार करेगा- जिनकी देश भर में इस नीति को क्रियान्वित करने हेतु तुरंत आवश्यकता होगी।